बहुश्रुत, पंडित रत्न, आगमवेता श्रमण संघीय प्रथम युवाचार्य
श्री मिश्रीमल जी महाराज मधुकर
की 102 वीं जनम जयंती पर विशेष 24-12-2015
युवाचार्य श्री जी के बहुआयामी व्यक्तित्त्व के बारे में महान साधक पुरुषों के
विचार –
आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी महाराज –
युवाचार्य श्री विनय, ऋजुता, मृदुता एवं सौम्यता के साकार प्रतीक
थे । उनका व्यक्तित्त्व वास्तव में बड़ा मोहक एवं आकर्षक था । मुझे बड़ा परितोष था कि
मैंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अत्यंत कुशल, समर्थ और सुयोग्य व्यक्ति का चयन
किया है । साथ ही सैद्धांतिक, आनुशासनिक दृढता और दक्षता का उनमें अपूर्व समन्वय था,
जिसकी एक शासन नायक में नितांत आवश्यकता होती है ।
राष्ट्रसंत
उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज –
सहज स्नेहशीलता, हार्दिक सदभावना एवं निर्मल
सरलता की जीवंत मूर्ति रहे हैं श्री मधुकर जी । अपने यशस्वी जीवन में अनेक पदों को
सुशोभित करते हुये श्रमण संघ के युवाचार्य पद तक पहुंचे । पद- प्रतिष्ठा का अहंकार
प्राय घेर ही लेता है मानव मन को । परंतु श्री मधुकर जी अहंकार की इस दुर्निवार लिप्तता
से अंत तक निर्लिप्त ही रहे ।
प्रखर वक्ता
कविरत्न श्री केवल मुनि जी महाराज –
युवाचार्य श्री विद्वान भी थे, शांत और विनम्र भी । किसी की
भी निंदा, आलोचना या विकथा से अलिप्त रहते थे । अधिकतर अपने ही स्वाध्याय, लेखन – मनन
और वाचन में समय को सार्थक करते थे । आपश्री का हृदय भी अति सरल था, न छल, प्रपंच,
न द्वंद ! वाणी भी मधुर और संयत । उनका मधुर और प्रशांत व्यक्तित्त्व युग युग तक यादों
में समाया रहेगा ।
मरुधर केसरी
प्रवर्तक श्री मिश्रीमल जी महाराज –
जैन जगत की ज्योति, गज़ब कीनो अंधियारो। पल में लियो उठाय, मधुकर
हार हिया रो ॥
“युवाचार्य” जाता रहया, भक्त रहे बिलखाय।
श्रमण संघ की डोर अब, कौन संभाले आय ॥
ज्योतिषाचार्य
उपाध्याय श्री कस्तूरचंद जी महाराज –
युवाचार्य श्री संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के अच्छे माने हुये
बहुश्रुत विद्वान मुनिराज थे, तथा संयम साधना में भी सदा जागरूक रहते थे । साहित्य
भंडार को भी आपश्री ने अभिनव पुस्तकें एवं ग्रंथ लिखकर समर्पित किए हैं ।
आचार्य श्री
देवेंद्र मुनि जी महाराज –
युवाचार्य श्री में हजारों गुण थे, पर सर्वतो महान सद्गुण था,
सरलता। काव्य की भाषा में कहा जाये तो वे नख – शिख सरल थे, निरदम्भ थे । उनका सिद्धान्त
था – सरल बनो, सुखी रहो । युवाचार्य श्री की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे अनासक्त
योगी थे । वे महान गुणानुरागी थे । वे सदा प्रसन्न रहते थे । वे शांति के देवता थे
। सभी उनके लिए अपने थे, पराया कोई नहीं था । उनके गुणों की सूची बहुत ही विस्तृत है
। अद्भूत था उनका व्यक्तित्त्व, और असाधारण था उनका कृतत्व ।
आचार्य श्री
डॉ श्री शिव मुनि जी महाराज –
युवाचार्य श्री मधुकर मुनि में सच्चे साधक
के सभी गुण विध्यमान थे। सरलता, सौम्यता, दूरदर्शिता, सांप्रदायिक भेदभाव से दूर रह
कर वे सभी को मधुरता प्रदान करते रहे हैं । भगवान महावीर के शब्दों में धर्म का मूल
है विनय और वह विनय आपके अंतकरण से प्रस्फुटित रही है । जब आप श्री जी को अपने संघ
का युवाचार्य बनाया गया तो आपकी अंतरात्मा ने स्वयं स्वीकार किया – “मैं अनुशासन में रहना जानता हूँ,
पर दूसरों पर अनुशासन करना मेरी आदत नहीं है ।“ यह आपकी विलक्षण विनम्रता थी – छोटों के साथ स्नेह, बड़ों से
विनम्रता ।
मधुकर शिष्य,
श्रमण संघीय सलाहकार श्री विनय मुनि जी महाराज “भीम” –
चहुंमुखी व्यक्तित्त्व के प्रभावशाली धनी थे गुरुदेव । पद का
बिलकुल भी मोह या ममत्व नहीं था । अपनी संप्रदाय के आचार्य पद पर रहे । श्रमण संघ के
उपाध्याय पद पर रहे, युवाचार्य पद को सुशोभित किया । फिर भी अभिमान आपको रंचमात्र छुआ
तक नहीं । अपने नेत्रों से पूज्य गुरुवर को नजदीक से देखा है – कितने मधुर ! कितने
विनम्र !
मधुकर शिष्या
काश्मीर प्रचारिका, राजगुरुमाता श्री उमराव कुँवर जी म. सा. “अर्चना” –
“यस्य सर्वे समारंभा, धर्मस्योन्नतिहेतवे
। तस्मे मधुकरायेव, युवाचार्याय वै नमः ॥
धन्य है वह देश जहां युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी महाराज “मधुकर” जैसे महामुनियों ने जन्म लिया
। धन्य है वह समाज, जो ऐसे महामुनि के वचनामृत से आप्लावित हुआ और धन्य है वह साधु
समाज, जो आप जैसे मुनि श्री जी के उपदेश वचनों को अपना अवलंबन बनाकर मानव – मंगल की
दिशा में उत्तरोतर अग्रसर है ।
प्रवर्तक
वाणी भूषण श्री रतन मुनि जी महाराज –
आचार्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज के समक्ष श्रमण संघ का उत्तराधिकार
देने की बात उठी । खोज को अधिक दूर नहीं जाना पड़ा । निगाहों में शीघ्र ही एक मूर्त
रूप उभर उठा । वह मूर्त रूप था श्री मधुकर मुनि जी का । सर्वत्र आनंद की लहर छा गयी,
प्रसार पा गयी । प्रतिभा सम्पन्न, प्रशांत मन, बहुश्रुत संत को युवाचार्य के रूप में
पाकर समाज खिल उठा ।
गणेश मुनि
जी महाराज “शास्त्री” –
युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी महाराज “मधुकर” का संत जीवन, श्रमण परंपरा के
प्रतिनिधि साधक जैसा रहा है । उनके बाह्य व्यक्तित्त्व में प्रभावपूर्ण आकर्षण भरा
था, तो अन्तर में था एक निर्विकार, मधुर और सरल गांभीर्य ।
पूर्व प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी –
युवाचार्य श्री जी ने भारतीय संस्कृति कि अनुपम
सेवा की है, वह युगों युगों तक चिर स्मरणीय रहेगी । उनके आदर्शों पर चलना ही उनके प्रति
सच्ची श्रद्धांजलि होगी । मैं बहुत ही भाग्यशाली हूँ कि पूज्य श्री के अंतिम संस्कार
के समय पुण्य सलिला गोदावरी के तट पर नासिक क्षेत्र में उपस्थित होकर श्रद्धांजलि अर्पित
कर रहा हूँ ।
जैन साहित्य
संपादक श्रीचंद सुराना “सरस” –
युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी महाराज स्थानकवासी
समाज के परम श्रद्धेय संत पुरुष थे, जिनके प्रति सम्पूर्ण समाज की , छोटे – बड़े सभी
की अपार श्रद्धा एवं असीम आस्था थी । वे अजातशत्रु थे । विद्वता और विनम्रता का मधुर
संगम था उनमें । वे एक ऐसे महावृक्ष थे जिसकी जीवन डाली पर अगणित गुण – सुमन फल – फूल
कर संसार को सौरभ और स्वाद का अमृत बांटते रहे ।
साभार – युवाचार्य श्री मधुकर मुनि स्मृति
ग्रंथ ।
संकलन – संजीव कुमार महावीरचंद नाहटा, अहमदाबाद
।
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